बड़ाई की बर्बरता

मरने पर हुई बड़ाई
जिंदा जिंदगी में आग लगाई
फूटी आँख न लोग सुहाए
फिर भी रेस्ट इन पीस कह जाए।
थे अच्छे तो क्यो कबाछ लगते थे
चौकठ पे क्यो माथा टेकते थे
नौकरी खाने को सब करम करते थे।
जब चले गए तो स्वामी दयानंद बनाये
बचे रह गए तो हंसराज ,श्रद्धानंद
कैसे जीवन मे खूब की श्रद्धा।
पूरे काल की घुड़का घुड़की
कोई न छोड़ा एक भी मौका
नीचे गिराने का जब सोचा
ठीक किया, तुमने हबाश में
अब क्यो ट्विटर पर चिचियाते हो
नही नही कोई मलाल अब भी नही
तब भी अपनी पड़ी में अड़े थे
आज भी लिखते अपनी ब्रांड चमकाने को
कौन किसी के कहने से
रेस्ट इन पीस हो जाता है
जिंदा में पीस नही मिला तो
मौत तो खुद पीस बन जाता
होगी तुम्हरी बात की जय जय
जिंदा में खरबंदा समझा
मौत के टुकड़े पर माला सहलाया
डर भी नही , मौत कभी नही देती जबाब।
काश कोई हमदर्द अपना
होना एक ही काफी है
बरना दुनिया स्वर्ग न बन जाये!😊
होता , चलता ,दिखता ये खेल तमाशा।
अनगिनत पथिक खड़े , सुशांत राजपूत जैसे
न कोई सबक , न कोई सिख
दिन दो दिन ,राख गयी बुझ
आँखे हुई तरोताजा
फिर वही होने है जीवन मे लूट मार की गाथा।
कौन कहता है सत्य पराजित नही हो सकता!
पूरी जिंदगी मे, झूठ जीतता है
सत्य कोने में भाग्य भगवान को कोसता है।
कभी गीता , कभी उपनिसद से
अपने होने का भान करता है।
आता एक समय मौत का जब
कफन सत्य की गाते झूठे सोक गीत।
महान हुए तो हर साल कफन बदलेंगे
अदने सुशांत दो दिन तक ही ठहरेंगे।

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