जिंदगी में सत्य का प्रयोग

मैं बोलूँ पर क्यों सच बोलूँ
जब जब सच बोला
खुद को बम भोला पाया।
जब जब झूठ बोला
तो खुद को इन्द्र में पाया ।
बात करूं मैं बचपन की
किस्से कहानियो के सिख की
गुरुवर के सच्ची बानी की
सोची मैंने आजमाने की
जब जब मैं आजमाया ,धोखा ही खाया
आगे बढ़ा तो अपने को छोड़ दूसरा न पाया
तो मैंने जाना ,समझा कि सच काहे बोलूं
धिरे चलु, तेजी या रुक रुक के या खरा रहू।
अजीब द्वंद है यह ,ब्रह्म का कटु सत्य है यह।
जो जैसा है उसे वैसा कहने का कथन है यह।
पर न पाया इसका ज्ञान की सच कब बोलू, कहाँ मैं बोलू।
वर्ग में बोला बड़ा मार खाया।
घर मे बोला अकेला पाया,
आरोपों की फेहरिस्त में बुड़बक का खिताब पाया।
अर्धागनी भी अधरों से देखे ,आखो से नक्कार,
सब मे शामिल होकर के करे मुझ से सवाल।
क्या खोया,क्या पाया,तनिक इसका करो विचार।
क्यों सच बोलने का तूने लिया है भार।

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