चारो तरफ ये शोर मचा है
कैसा बुद्धि का बम फूटा है!
लोग देख अवाक रह जाते
पूरे मुँह न बोल पाते।
जो कहे खुद को बुद्धिजीवी
वह खुद है अर्धजीवी
न अंदर की बात जीभ पे ला पाते
जो लाते उसे बुरबक कह चुप कराते
और कहते हमने तो पहले ही सोचा था
यहाँ पर नही कुछ होना था
सो सी ली थी अपने जुवान को
व्योम में जाने से रोका बुद्धि को
तुम क्यो इतना फरफराते हो
लगता कि शैशवकाल की तरह खिलखिलाते हो।
बंद करो अपनी ये हँसी
आ जाओ मेरी लाइन पर
मैंने ऐसे ही सफेद बाल नही किये
तुम दो दिन के आये
नई बात करोगे
लंबी बीमारी का शीघ्र इलाज करोगे
नही मानोगे तो तेरा लाइन हाजिर होगा
जाओगे किसके पास सब मेरा आदमी होगा
बात बढ़ते देख,बुद्धिजीवी की बुद्धि खिसक आई
लगता है इस नवयुवक की बात रंग लाई
फिर हुआ गोलमेज सम्मेलन
पके बालो ने काले, अधपके बालो से पूछा
क्या है इरादा हमे नही जीने देने का
क्यों व्यर्थ की बात करते हो
जो चलता आ रहा है
चलने दो , मत छेड़ो उसे
तर्क , कुतर्क से बात बढ़ गयी
चेतावनी का चिंतन गूँजा
ठहर,बरना बुधिपाश में जकड़े जाओगे
तुम यहाँ रहकर भी बाहरी कहलाओगे
चरणबन्दना है सबका उत्तर
चाहे हो दो कितने प्रतिउत्तर
सात खून माफ हो जाएगा
तू बड़ा नाम कमायेगा
तेरी बुद्धि कभी काम न आएगी
फिर भी बुद्धिवादी कहलायेगा।
आयी बात जब अस्तित्व की
एक दूसरे के तरफ देखे
मंद मंद मुस्कुराकर बोले
बोलिये सर जी आप बोलिये
आप के पहले सब आप ही आते
जुबान किसकी नही खुलती
बाप के सामने बोलने की हिम्मत नही होती
सारी तकनीक धरे धरे राह जाते
नये आये लोग फँस जाते
खूब उनकी तीमारदारी होती
बुद्धि का रोग नही डसा उसे
वो चुनौती में इसे लेता।
बुद्धिजीवी नही करने देने का संकल्प लेता
बात आके वही पर रुकती
जिसे वो अटका के चलते
समय सीमा खत्म होता
बेचारा जबाब नही दे पता
हँसते हँसते बुद्धि की सूली पर चढ़ जाता
फिर बुद्धजीवी मुस्कुराता
कहे थे नही होगा, सो हुआ
माना नही मेरा बात
बमन हो गयी तेरी आँत
अब तुझे आराम करना पड़ेगा
अंततः जय हिंद कहना ही पड़ेगा।
बौद्धिक बिक्षिप्तता
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